पहलः बासमती की खुशबू लौटाने के लिए कसरत तेज, बाजपुर में बनेगा चावल जोन

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ऊधमसिंह नगरः उत्तराखंड में धान की पैदावार को बढ़ाने के लिए जोरदार पहल की जा रही है। तराई क्षेत्र में कम होती बासमती की खेती पर विशेष फोकस किया जायेगा। इसके लिए बाजपुर और काशीपुर में बकायदा बासमती जोन बनाने की तैयारी है। बासमती जोन के साथ-साथ क्षेत्र में किसान उत्पादक समूह यानी एफपीओ का गठन भी किया जाना है। जो 300 किसानों का एक समूह होगा। इस योजना को नाबार्ड की सहायता से चलाया जायेगा। जिसमें किसानों को बासमती की उत्तम प्रजाति, वैज्ञानिक जानकारियां, कृषि यंत्र एवं उनकी खरीद पर विशेष छूट, फसल के लिए बाजार मुहैया करना आदि शामिल है। इसके लिए जिला स्तर पर निगरानी समिति बनेगी जो इसका पूरा ध्यान रखेगी।

सिमट रही खेती की जमीन
यूएसनगर में जहां वर्ष 2017-18 में बासमती की खेती एक लाख पांच हजार 409 हेक्टेयर में होती थी वहीं वर्ष 2018-19 में एक लाख सात हजार हेक्टेयर में इसकी खेती हुई। जबकि इस वर्ष यह एक लाख तीन हजार हेक्टेयर में सिमट कर रह गई है। जिले के मुख्य कृषि अधिकारी के मुताबिक कई साल पहले तक बासमती दस हजार हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल में बोई जाती थी। लेकिन वर्तमान में यह घटकर साढ़े तीन हजार हेक्टेयर से कम रह गई है। कृषि मंत्रालय की ओर से किसानों की आय दोगुनी करने की दिशा में केंद्रीय योजना के तहत कृषक उत्पादन संगठन बनाए जा रहे हैं। इसके तहत जिले में भी कृषक उत्पादन संगठन के दो क्लस्टरों में से एक क्लस्टर बाजपुर और काशीपुर में बनाया जाएगा। इस कलक्टर में बासमती चावल की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा। 

एफपीओ का होगा गठन
नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक राजीव प्रियदर्शी के मुताबिक एक क्लस्टर में बनने वाले एफपीओ में 300 किसानों को शामिल किया जाएगा। काशीपुर और बाजपुर में प्रस्तावित क्लस्टर में शामिल किसानों को बासमती की खेती के लिए वैज्ञानिक प्रशिक्षण, दूसरे बासमती जोनों में भ्रमण, बेहतर प्रजाति की जानकारी देने के साथ ही कृषि यंत्रों की खरीद पर रियायत दी जाएगी। इसके अलावा पैदा किए जाने वाले बासमती का अच्छा दाम मिले, इसकी व्यवस्था की जाएगी। 

कृषि से कतरा रहे किसान
जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिको का कहना है कि किसान अब खेती से दूर हो रहा है। इसके पीछे का कारण उर्वरकों के बढ़ते दाम, अंधाधुंध रसायनों के प्रयोग व गिरते जलस्तर, और खेती में लागत बढ़ना है। फसलों में लगने वाली बीमारियों के चलते प्रतिवर्ष उत्पादन में कमी हो रही है। मिलों की ओर से कई वर्षों तक गन्ना किसानों का भुगतान लंबित रखने सहित धान और गेहूं के मूल्य भुगतान में भी देरी हो रही है। तराई में किसानों का पारंपरिक खेती के प्रति रुझान घटता जा रहा है। किसान नकदी फसलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

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