बेमिसाल औषधीय गुणों से भरपूर एक स्वादिष्ट जंगली फल है ‘तिमला’

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देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड के पर्वतीय अंचल के पारंपरिक खानपान में जितनी विविधता एवं विशिष्टता है, उतनी ही यहां के फल-फूलों में भी है। जो हमारे पहाड़ को प्राकृतिक रूप में संपन्नता प्रदान करती हैं। देवभूमि में बेडू, मेलू, काफल, अमेस, दाड़ि‍म, करौंदा, बेर, जंगली आंवला, खुबानी, हिंसर, किनगोड़, खैणु, तूंग, खड़ीक, भीमल, आमड़ा, कीमू, गूलर, भमोरा, भिनु समेत जंगली फलों की ऐसी सौ से ज्यादा प्रजातियां हैं, जो ना सिर्फ स्वाद में बल्कि सेहत की दृष्टि से भी बेहद अहमियत रखते हैं। आज हम आपको इन्हीं में से एक प्रजाति के फल के बारे में बताने जा रहे है, जिसे उत्तराखंड में तिमला कहा जाता है। यह पौष्टिक और औषधीय गुणों से भरपूर फल है। यही नहीं तिमला का लाजवाब जायका हर किसी को इसका दीवाना बना देता है। तो चलिए जानते है  इस फल के बारे में विस्तार से…

 

कई नाम से पहचाना जाता है तिमला

तिमला उत्तराखंड के कई इलाको में पाया जाने वाला जंगली फल हैं|  मोरेसी कुल के इस पौधे का वैज्ञानिक नाम फिकस ऑरिकुलेटा है। हिंदी में तिमला को अंजीर कहते हैं और अंग्रेजी में इसे एलिफेंट फिग कहते हैं। जबकि स्थानीय़ भाषा में तिमला को तिमल, तिमलू, तिमली आदि नामों से जाना जाता है।

 

800 से 2 हजार मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता

तिमला समुद्रतल से 800 से 2000 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है। उत्तराखंड के अलावा यह फल भूटान, नेपाल,हिमाचल,म्यामार, दक्षिण अमेरिका,वियतनाम आदि जगहों में भी पाया जाता है।

 

तिमले की नहीं की जाती खेती

उत्तराखण्ड में तिमले का ना तो उत्पादन किया जाता है और ना ही खेती की जाती है। यह एग्रो फॉरेस्ट्री के अंतर्गत खुद ही खेतों की मेंड पर उग जाता है। वहीं पक्षी भी इसके बीजों को इधर से उधर ले जाने में सहयोग करते हैं। कई कीट और पक्षी इसके परागकण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।

 

प्रकृति की अनूठी रचना है तिमला फल

तिमला फल प्रकृति की अनूठी रचना है यह तना भी है और फूल भी है। जिसका खिलना लोगों को दिखाई नही देता है। दरअसल बाहरी आवरण तने का हिस्सा होता है और इसके सूक्ष्म फूल इसके अन्दर होते हैं जो दिखाई नहीं देते। वहीं दंतकथाओ के अनुसार कहा जाता हैं की जिसे भी वह फूल दिखाई देता है वह भाग्यशाली माना जाता है|

 

रसीला और गूदेदार होता है तिमला फल

तिमला एक ऐसा फल है, जिसे स्थानीय लोग, पर्यटक और चरवाहा बड़े चाव से खाते हैं। जबकि पहाड़ों में बच्चों की पहली पसंद आज भी इसे माना जाता है। बता दें कि यह फल रसीला और गूदेदार होता है। इसका रंग हल्का पीला, गहरा सुनहरा या गहरा बैंगनी हो सकता है। इसका पूरा फल छिलके और गूदे के साथ खाया जाता है।

 

तिमले का धार्मिक रूप से भी विशेष महत्व

देवभूमि में तिमला को धार्मिक रूप से विशेष महत्व दिया गया है। ऐसी कोई भी छोटी बड़ी पूजा नहीं है जिसमें तिमले के पत्ते का इस्तेमाल ना होता हो। क्योंकि इस पेड़ को पीपल के पेड़ जैसा पवित्र माना गया है|  इसके पेड़ के पत्तों को पूजा पाठ के कार्यो में और पत्तल बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है|

 

औषधीय गुणों का भरपूर भंडार

तिमला एक औषधीय फल है या यूं कह सकते हैं, एक औषधीय पौधा है। इसमें औषधीय गुणों का भरपूर भंडार है। पारंपरिक रूप में तिमले को कई शारीरिक विकारों, जैसे अतिसार, घाव भरने, हैजा और पीलिया जैसी गंभीर बीमारियों की रोकथाम में प्रयोग किया जाता है। कई अध्ययनों के अनुसार तिमला का फल खाने से कई सारी बीमारियों के निवारण के साथ-साथ आवश्यक पोषक तत्वों की भी पूर्ति हो जाती है। इसमें पोटेशियम, फास्फोरस, मैग्नीशियम,कैल्शियम, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन, विटामिन a और b आदि पोषकतत्व पाए जाते हैं।

 

सेब-आम से भी बेहतर गुणवत्ता वाला फल

इंटरनेशनल जर्नल फार्मास्युटिकल साइंस रिव्यू रिसर्च के अनुसार तिमला व्यावसायिक रूप से उत्पादित सेब और आम से भी बेहतर गुणवत्ता वाला फल है। पके हुये तिमले का फल ग्लूकोज, फ्रुक्टोज व सुक्रोज का भी बेहतर स्रोत माना गया है, जिसमें वसा और कोलस्ट्रोल नहीं होता है। इसमें अन्य फलों की अपेक्षा काफी मात्रा में फाइबर और फल के वजन के अनुपात में 50 प्रतिशत तक ग्लूकोज पाया जाता है। जिसकी वजह से कैलोरी भी बेहतर मात्रा में पायी जाती है।

 

ये हैं तिमला फल के सेवन के लाभ

  • तिमला में पाए जाने वाला कैल्शियम हड्डियां मजबूत करता है।
  • कैंसर में यह फल बहुत लाभकारी है। इस पर कई शोध भी हो चुके हैं।
  • मधुमेह (शुगर) में तिमला फल बहुत लाभदायक माना जाता है।
  • तिमला फल को दिल की बीमारियों में कारगर माना गया है।
  • इसे दूध में उबालकर खाने से खून बढ़ता है और रक्तविकार दूर होते हैं।
  • हाइपरटेंशन, कब्ज, कमर दर्द, अस्थमा, जुकाम जैसी बीमारियों में इसका सेवन आराम पहुंचाता है।
  • यह सूखे मेवे का काम भी करता है। इसे पानी मे भिगोकर सेवन करने से छाती रोगों में लाभ मिलता है।

 

चारा के रुप में किया जाता उपयोग

तिमला ना केवल पौष्टिक और औषधीय महत्व का फल है, बल्कि पर्वतीय क्षेत्रों की पारिस्थितिकी में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाता है। तिमला के पेड से सफ़ेद रंग का दूध जैसा द्रव निकलता है यदि किसी को काँटा चुभ जाये तो इसका दूध उस जगह पर लगा दो तो थोड़ी देर बाद कांटा बड़ी आसानी से बहार निकाल सकते है| इसके अलावा तिमला के पत्ते चारे का काम करती हैं। पहाड़ों में दुधारू पशुओं को इसके पत्ते खिलाया जाता है, कहा जाता है कि तिमला के पत्तों से दुधारू पशु ज्यादा दूध देती है।

 

तिमला फल से बनने वाले उत्पाद

तिमला एक मौसमी फल है। इसके मौसम में इसे फल के रूप में सेवन करते हैं। कच्चे तिमला की लजीज चटपटी सब्जी भी बनाई जाती है। साथ ही इसका अचार भी बनाया जाता है। इसके अलावा जैम ,जैली, फॉर्मास्युटिकल, न्यूट्रास्युटिकल और बेकरी उद्योगों में प्रयोग किया जाता है।

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